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Allahabad High Court Challenges Its Own Decision In The Supreme Court - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

[ad_1] ख़बर सुनें ख़बर सुनें हाईकोर्ट के पारिवारिक अदालतों की देखरेख के सवाल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने ही फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। उसकी अपील पर जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर भानुमति की पीठ ने प्रतिवादी और उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा एसोसिएशन को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब देने को कहा है। हाईकोर्ट की ओर से जगजीत सिंह छाबड़ा और यशवर्धन मामले की पैरवी कर रहे हैं।   इस मामले में मुख्य मुद्दा उत्तर प्रदेश में पारिवारिक अदालतों की देखरेख की जिम्मेदारी हाईकोर्ट को दिए जाने के विरोधाभाषी नियमों को लेकर है। राज्य सरकार द्वारा पास उत्तर प्रदेश पारिवारिक अदालत नियम, 1995 के नियम 36 कहता है कि सभी पारिवारिक अदालतें हाईकोर्ट की देखरेख में काम करेंगी।  हालांकि, हाईकोर्ट द्वारा पास उत्तर प्रदेश पारिवारिक अदालत नियम, 2006 के नियम 58 के अनुसार पारिवारिक अदालत के जज जिला जज की प्रशासनिक एवं अनुशासनात्मक देखरेख के तहत आएंगे। अलबत्ता, इन पर हाईकोर्ट का पूर्ण नियंत्रण होगा। उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा एसोसिएशन ने नियम 58 को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने इसके 1995 क...

Kathua case: Probe be handed over to CBI, accused tells SC | कठुआ केस : दो आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

[ad_1] नई दिल्ली: कठुआ सामूहिक बलात्कार मामले के दो मुख्य आरोपियों ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए , ताकि न्याय हो सके. गौरतलब है कि जनवरी में आठ साल की एक बच्ची का शव कठुआ के रासना जंगल से मिला था. उससे सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. आरोपियों ने मुकदमे को चंडीगढ़ स्थानांतरित किए जाने की याचिका का भी विरोध किया है.  सांझी राम और विशाल जंगोत्रा ने दावा किया कि पुलिस एक निष्पक्ष और प्रभावी जांच करने में नाकाम रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि मामले की जांच करने वाली विशेष जांच टीम ( एसआईटी ) में दागी अधिकारी शामिल थे.  शीर्ष न्यायालय में दाखिल किए गए अपने हलफनामे में आरोपियों ने मृतका के पिता की उस याचिका का विरोध किया है जिसके तहत उन्होंने मुकदमे की सुनवाई कठुआ से चंडीगढ़ स्थानांतरित करने की मांग की है.  उन्होंने दलील दी है कि मामले में 221 गवाह हैं और चंडीगढ़ जाकर अदालती कार्यवाही में शामिल होना उनके लिए मुश्किल होगा.  गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने 27 अप्रैल को मुकदमे की सुनवाई पर सात...

Judiciary-Executive showdown in Supreme court । जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सामने आया केंद्र और न्यायपालिका में टकराव

[ad_1] नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच चल रही खींचतान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में उस समय खुल कर सामने आ गई जब केन्द्र ने उच्च न्यायालयों में रिक्त स्थानों पर नियुक्तियों के लिये थोड़े नामों की सिफारिश करने पर कोलेजियम पर सवाल उठाये. शीर्ष अदालत ने भी इसके जवाब में कोलेजियम द्वारा की गयी सिफारिशें लंबित रखने के लिये केन्द्र को आड़े हाथ लिया. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा , ‘‘ हमें बतायें , कितने नाम ( कोलेजियम द्वारा की गयी सिफारिशें ) आपके पास लंबित हैं. ’’ अटार्नी जनरल ने जब यह कहा , ‘‘ मुझे इसकी जानकारी हासिल करनी होगी ’’ तो पीठ ने व्यंग्य करते हुये कहा , ‘‘ जब यह सरकार पर आता है तो आप कहते हैं कि हम मालूम करेंगे. ’’ पीठ ने यह तल्ख टिप्पणी उस वक्त की जब वेणुगोपाल ने कहा कि यद्यपि न्यायालय मणिपुर , मेघालय और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त स्थानों के मामले की सुनवाई कर रही है , लेकिन तथ्य तो यह है कि जिन उच्च न्यायालयों में न्यायाधी...

केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से SC/ST एक्ट संबंधी अपने फैसले पर रोक लगाने का किया आग्रह

[ad_1] नई दिल्लीः  सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट को लेकर दिए निर्णय पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार गुरुवार को कोर्ट से अनुरोध किया. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इन समुदायों के अधिकारों के संरक्षण और उनके प्रति अत्याचार करने के दोषी व्यक्तियों को दंडित करने का सौ फीसदी हिमायती है. न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस मामले में न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया.  उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसे नियम या दिशानिर्देश नहीं बना सकती जो विधायिका द्वारा पारित कानून के विपरीत हों. वेणुगोपाल ने अनुसूचित जाति - जनजाति कानून से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को वृहद पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हुये कहा कि इस व्यवस्था की वजह से जानमाल का नुकसान हुआ है.  यह भी पढ़ेंः  SC/ST कानून पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए अध्यादेश का मसौदा तैयार कर रहा है केंद्र पीठ ने अपने 20 मार्च के फैसले को न्यायोचित ठहराते हुये कहा कि अनुसूचित जाति - जनजाति कानून पर अपनी व्यवस्...

लोग नेताओं के ऑफिस के निकट प्रदर्शन के लिए क्यों नहीं आ सकते : सुप्रीम कोर्ट

[ad_1] Supreme Court लोगों के प्रदर्शन के अधिकार को मान्यता देने वाले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसले हैं.  [ad_2] Source link